यादें बचपन की
दिल में, मोहब्बत का खज़ाना ढूँढें,
ज़िंदगी जीने का, कुछ बहाना ढूँढें।
मतलबी लोग, बहुत देख चुके हम,
चलो, अब अपना गाँव पुराना ढूँढें।
गाँव के बाहर, पुलिया पर बैठकर,
सुबह चिड़ियों का, चहचहाना ढूँढें।
हम नकली जीवन, बहुत जी चुके,
अब बच्चों की तरह, मुस्कराना ढूँढें।
गलतियों को दोस्त, भुला चके होंगे,
उनकी गली में चक्कर, लगाना ढूँढें।
काएँ-पत्ते का खेल, याद करता होगा,
वो जल्दी से, पेड़ पर चढ़ जाना ढूँढें।
हमें बड़ा कर, न जाने कहाँ खो गया?
चलो फिर से, बचपन का ज़माना ढूँढें।
बैलगाड़ी पर बैठ कर, खेत पर जाएँ,
वो कोल्हू पर, गर्म गुड़ खिलाना ढूँढें।
शिक्षक बन, जिन्हें पढ़ा न सके हम,
अब बच्चा बनकर, उन्हें पढ़ाना ढूँढें।
रचयिता
प्रदीप कुमार,
सहायक अध्यापक,
जूनियर हाईस्कूल बलिया-बहापुर,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा,
जनपद-मुरादाबाद।
विज्ञान सह-समन्वयक,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा।
ज़िंदगी जीने का, कुछ बहाना ढूँढें।
मतलबी लोग, बहुत देख चुके हम,
चलो, अब अपना गाँव पुराना ढूँढें।
गाँव के बाहर, पुलिया पर बैठकर,
सुबह चिड़ियों का, चहचहाना ढूँढें।
हम नकली जीवन, बहुत जी चुके,
अब बच्चों की तरह, मुस्कराना ढूँढें।
गलतियों को दोस्त, भुला चके होंगे,
उनकी गली में चक्कर, लगाना ढूँढें।
काएँ-पत्ते का खेल, याद करता होगा,
वो जल्दी से, पेड़ पर चढ़ जाना ढूँढें।
हमें बड़ा कर, न जाने कहाँ खो गया?
चलो फिर से, बचपन का ज़माना ढूँढें।
बैलगाड़ी पर बैठ कर, खेत पर जाएँ,
वो कोल्हू पर, गर्म गुड़ खिलाना ढूँढें।
शिक्षक बन, जिन्हें पढ़ा न सके हम,
अब बच्चा बनकर, उन्हें पढ़ाना ढूँढें।
रचयिता
प्रदीप कुमार,
सहायक अध्यापक,
जूनियर हाईस्कूल बलिया-बहापुर,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा,
जनपद-मुरादाबाद।
विज्ञान सह-समन्वयक,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा।
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