अभिव्यक्ति

मन के एहसासों को शब्दों में पिरोकर माला एक बनानी है,
नन्हें फूलों, नन्हीं परियों, कोमल कलियों, नटखट भंवरों की ये अलग कहानी है।

कुछ तो ऊपर से नीचे तक पूरा गणवेश किये हैं धारण,
पर कुछ के गंदे कपड़े और गंदे जूते; बने हैं उनकी डाँट का कारण।
इन्हीं अधूरे किरदारों में रंग सलीके से भरकर एक तस्वीर बनानी है।
नन्हें फूलों, नन्हीं परियों, कोमल कलियों, नटखट भंवरों की ये अलग कहानी है।।

प्रार्थना सभा के बाद देखिये कक्षा का क्या नज़ारा है?
हो गया समय शिक्षण अधिगम का घड़ी ने किया इशारा है।
सीखना सिखाना ही है सब कुछ, शिक्षा की नयी उम्मीद जगानी है।
नन्हें फूलों, नन्हीं परियों, कोमल कलियों, नटखट भंवरों की ये अलग कहानी है।।

कुछ तो अपने में मस्त हैं बैठे, कुछ हैं काम में जुटे हुए,
कुछ ताका झांकी करते हैं, कुछ बातों में लगे हुए।
कुछ नटखट बच्चों ने पूरे टाइम एक ही बात ये ठानी है,
हर बच्चे की हर टीचर से शिकायत एक लगानी है।
नन्हें फूलों, नन्हीं परियों, कोमल कलियों, नटखट भंवरों की ये अलग कहानी है।।

हर पल हर क्षण यही है कोशिश, कितना ज्यादा इन्हें सिखा दूँ,
जीवन की हर कठिन परिस्थिति के लायक मैं इनको बना दूँ।
शिक्षित, सभ्य, सुसंस्कृत बनकर करें देश का नाम ये रोशन,
 ये जिम्मेदारी बड़ी निभानी है।
नन्हें फूलों, नन्हीं परियों, कोमल कलियों, नटखट भंवरों की ये अलग कहानी है।।

रचयिता
राधा शुक्ला,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय विसायकपुर,
विकास खण्ड-सरवनखेड़ा,
जनपद-कानपुर देहात।

Comments

Post a Comment

Total Pageviews