नारी रूपी पतंग

वो उड़ी सी है
थोड़ा पड़ी सी है।
वो नारी रूपी पतंग
कुछ कटी सी है।।

१)चित्त में नित नवीन
उमंग रखने वाली।
आज डरी सहमी
मझधारर में खड़ी सी है।।

२)नन्हीं कोपलों से
सुगन्धित पुष्प बनने वाली।
आज वक़्त की
माला में जड़ी सी है।।

३)असाध्य परिस्थिति में
हार न मानने वाली।
क्यों अपनी बेटी को देख
बनना चाहती एक छड़ी सी है।।

४)राम, कृष्ण जैसे सुपुत्रों
को जन्म देने वाली।
क्यों चेहरों के जंगल में
कुंठित अड़ी सी है।।

५)फिर भी आसमां में
उमंग की पतंग लहराने वाली।
हिम्मत जुटाये राह में
अडिग खड़ी सी है।।

वो अब कटी सी नहीं।
पंख पसारे पुनः उड़ी सी है।।

रचयिता
आयुषी अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास,
विकास खण्ड-कुन्दरकी,
जनपद-मुरादाबाद।

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