जय संविधान
1
जय जय भारत के संविधान।
जनगण आशा के
अंशुमान।
हे विराट चिन्तन के कीर्तिमान।
रचना की जिसने,
वो मानवता के रक्षक महान।
जनहित के जिसमें,
सूत्र सबल शाश्वत शक्तिमान।।
है जनगण मंगल का,
भारत का समरसता संविधान।
नवपथ निर्देशन है,
मानवता का सपना विद्यमान।।
जय जय भारत के,
दिव्य उच्च विधि के संविधान।।
2
जय जनतंत्र
जय जय भारत, शाश्वत भारत।
जन जन अभिमत वंदित भारत।
मंगलमय पथ विकसित नव पथ,
सत्य अहिंसा मानवता तप व्रत।
जय जनतंत्र समुन्नत नित मंगल,
जनहित भाव सतत हो अविचल।
शुभ हो जय हो निर्भय हो भारत।
जय जय भारत शाश्वत भारत।
जय जय भारत के संविधान।
जनगण आशा के
अंशुमान।
हे विराट चिन्तन के कीर्तिमान।
रचना की जिसने,
वो मानवता के रक्षक महान।
जनहित के जिसमें,
सूत्र सबल शाश्वत शक्तिमान।।
है जनगण मंगल का,
भारत का समरसता संविधान।
नवपथ निर्देशन है,
मानवता का सपना विद्यमान।।
जय जय भारत के,
दिव्य उच्च विधि के संविधान।।
2
जय जनतंत्र
जय जय भारत, शाश्वत भारत।
जन जन अभिमत वंदित भारत।
मंगलमय पथ विकसित नव पथ,
सत्य अहिंसा मानवता तप व्रत।
जय जनतंत्र समुन्नत नित मंगल,
जनहित भाव सतत हो अविचल।
शुभ हो जय हो निर्भय हो भारत।
जय जय भारत शाश्वत भारत।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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