गणतंत्र दिवस
71वें गणतंत्र दिवस पर, आओ तिरंगा फहराएँ।
जनता के शासन से, स्वयं का विस्तार कराएँ।।
पर न भूलें इसकी खातिर, लाखों ने प्राण गँवाए।
ऐसे भी थे अब तक, लौट के घर न आए।।
आजादी की खातिर, विधवा हुई बालाएँ।
छूटी न थी हाथ की मेंहदी, तस्वीर पै लगा दी मालाएँ।।
इतनी कीमत दी जिसने, पर आस न थी कुर्सी की।
आज बोलते दिन भर झूठ, आस वही कुर्सी की।।
इसीलिए दी क्या कुर्बानी, देश को बेचें-खाएँ।
बपौती समझ अपनी, देश में लूट मचाएँ।।
बोटी-बोटी दें करने की धमकी, हाथ से छीन निवाला खाएँ।
हमें चाहिए आजादी के दें नारे, अपने स्वार्थ सिद्ध कराएँ।।
इस अनपढ़ भोली जनता को, हम बेवकूफ बनाएँ।
हाथों में लें आड़ तिरंगा, अपने स्वार्थ लहराएँ।।
फिर क्यों न हम इस बार, कसम यही उठाएँ।
इस ध्वज की खातिर, अपने स्वार्थ को तिलांजलि दिलाएँ।।
71वें गणतंत्र दिवस पर, आओ तिरंगा लहराएँ।
जनता के शासन से सबका विस्तार कराएँ।।
रचयिता
नरेन्द्र सैंगर,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बरकातपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।
जनता के शासन से, स्वयं का विस्तार कराएँ।।
पर न भूलें इसकी खातिर, लाखों ने प्राण गँवाए।
ऐसे भी थे अब तक, लौट के घर न आए।।
आजादी की खातिर, विधवा हुई बालाएँ।
छूटी न थी हाथ की मेंहदी, तस्वीर पै लगा दी मालाएँ।।
इतनी कीमत दी जिसने, पर आस न थी कुर्सी की।
आज बोलते दिन भर झूठ, आस वही कुर्सी की।।
इसीलिए दी क्या कुर्बानी, देश को बेचें-खाएँ।
बपौती समझ अपनी, देश में लूट मचाएँ।।
बोटी-बोटी दें करने की धमकी, हाथ से छीन निवाला खाएँ।
हमें चाहिए आजादी के दें नारे, अपने स्वार्थ सिद्ध कराएँ।।
इस अनपढ़ भोली जनता को, हम बेवकूफ बनाएँ।
हाथों में लें आड़ तिरंगा, अपने स्वार्थ लहराएँ।।
फिर क्यों न हम इस बार, कसम यही उठाएँ।
इस ध्वज की खातिर, अपने स्वार्थ को तिलांजलि दिलाएँ।।
71वें गणतंत्र दिवस पर, आओ तिरंगा लहराएँ।
जनता के शासन से सबका विस्तार कराएँ।।
रचयिता
नरेन्द्र सैंगर,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बरकातपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।
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