मौन

जैसा मन वैसा ही तन,
वैसा ही कर्म एवं वचन।
अतः मन की शुद्धि परम आवश्यक है, मन की शुद्धि के लिए मौन। मौन रहने से मन शांत एवं एकाग्र होगा। मौन सिर्फ बोलना बंद करना ही नहीं, चुप रहना ही नहीं, बल्कि वास्तव में इंद्रियों पर खुद का नियंत्रण करना है। इंद्रियों के नियंत्रण में सहयोगी मौन एक अच्छा उपाय है।
गौतम बुद्ध को 7 दिन के मौन के बाद ही बोध की प्राप्ति हुई। उसके बाद उन्होंने कहा-"जो जानते हैं मेरे कहे बिना ही जानते हैं और जो नहीं जानते वह मेरे कहने से भी नहीं जानेंगे।"
उपरोक्त पंक्तियाँ पूरी तरह सत्य हैं तभी तो भगवान बुद्ध को मौन की प्रतिमूर्ति कहा गया है। 
मौन सर्वोत्तम भाषण है-महात्मा गाँधी। 

मौन एक व्रत है, जो सभी कार्य पूर्ण करता है। जीवन का स्रोत है। क्रोध में, दुख में व्यक्ति मौन धारण करे या मौन की शरण में जाए तो नुकसान त्वरित कम होंगे। मौन साधना एक अचूक उपाय है। इससे चित्तवृति से बचा जा सकता है। मौनावस्था  में अतीत के अनुभवों के तार जुड़ते हैं। सद्विचारों का सृजन होगा।

मौन से मानसिक शक्ति की बचत होती है। अतः जब बहुत जरूरी हो तभी बोलें ताकि शब्दों की शक्ति का संचय हो सके।यही शक्ति स्फूर्ति, प्रतिभा, कार्यक्षमता, सूक्ष्मदर्शिता को कई गुना बढ़ाएगी। हमारी अंतरआत्मा की चेतना को बढ़ाएगी। 
मौन साधना का मूल अर्थ ऊर्जा संचयन ही तो है। इससे अंतः करण में निखार आयेगा। आइए आत्मा की ध्वनि सुनें, मौन रहें। 

लेखिका
मोनिका सिंह,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय मलवां प्रथम,
विकास खण्ड-मलवां,
जनपद-फतेहपुर।

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