बाल श्रम निषेध दिवस

उम्र कच्ची है, सँभालो इन्हें;

काम की बेड़ियों में, न बाँधो इन्हें।


नाज़ुक कली हैं ये, मुरझा जाएँगे;

खिलने से पहले ही, बिखर जाएँगे।


नन्हें-2 कंधों पर, न डालो बोझ घर का;

चंद सिक्कों के चक्कर में, 

ना छीनो बचपन इनका।


पकड़ाओ क़लम, इन हाथों में;

कि आने वाला कल सँवर जाए।


वरना तो झाड़ू बर्तन में,

किस्मत की रेखाएँ ही धुल जाएँ।


दुनिया की चालाकियों से, ये नादान हैं;

ख़रीद लेते हैं उनकी मजबूरियाँ,

इस बात से अनजान हैं। 


यूँ तो अक्सर ही कहीं ना कहीं ये दिख जाते है,

कौन-सा अपने घर के ये बच्चे हैं;

यही सोच के हम, कहाँ कुछ कर पाते हैं।


कुछ सोच कर ही तो,

तय किया है उम्र का दायरा;

कम से कम उतना तो, इन्हें बढ़ने दो।


उठा सकें मजबूती से जिम्मेदारियाँ,

कम से कम, इतना तो इन्हें पकने दो।


मुसतक़बिल है ये कल के,

आओ सँवारें इन्हें।

अंधेरी गलियों से,

आओ मिल कर निकालें इन्हें।।


रचयिता

हिना सिद्दीकी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कुंजलगढ़,
विकास खण्ड-कैंपियरगंज,
जनपद-गोरखपुर।

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