106/2024, बाल कहानी - 01 जुलाई


बाल कहानी- माँ की दवाई 
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आज टिंकू बहुत खुश था। उसे अपने घर के बाहर खेलते वक्त बीस रुपए पड़े मिले।
टिंकू बीस रुपए पाकर बहुत खुश हुआ। वह दौड़कर एक दुकान पर गया और अपनी मनपसन्द चॉकलेट खरीदकर घर की तरफ चल दिया। मन ही मन टिंकू बहुत खुश था।
वह किसी तरह घर जल्दी पहुँचकर चॉकलेट सुकून से बैठ कर खाना चाहता था।
टिंकू बड़ी तेज़ी में घर जा रहा था तभी उसका एक मित्र रोते हुए कहीं जा रहा था।
टिंकू ने अपने मित्र रमेश को आवाज लगायी और पास जाकर बोला-, "ये बताओ, तुम तुम रो क्यों रहे हो?"
"क्या बताऊँ मित्र? पिताजी ने दवाई मगाई थी माँ के सिर में बहुत तेज़ दर्द हो रहा है। मैं जब मेडिकल स्टोर पर पहुँचा तो मेरे जेब में पैसे ही नहीं थे। तब से इधर-उधर पैसे को ढूँढ रहा हूँ, पर कहीं मिल नहीं रहा है। उधर माँ दर्द से कराह रही है। मैं घर किस मुँह से जाऊँ?" ये कह कर मित्र जोर-जोर से रोने लगा।
"तुम तो मेरे घर के हालात जानते हो। मेरे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।"
टिंकू को मित्र की बातें सुनकर बहुत दुःख हुआ। फिर टिंकू ने अचानक अपने मित्र रमेश से पूछा-, "ये बताओ, कितने रुपए तुम्हारे खोए है? ताकि मैं भी कुछ तुम्हारी ढूँढने में मदद कर सकूँ।"
"बीस रुपए का नोट था।"
रमेश की बात सुनकर टिंकू परेशान हो गया। टिंकू के पैर के नीचे की जमीन खिसक गयी। उसके चेहरे का रंग फीका पड़ गया। वह अपने हाथ में चॉकलेट कसकर पकड़कर देखता रहा फिर दौड़कर घर के अन्दर चला गया और अपने कमरे में जाकर चाकलेट खाने के लिए एक किनारे बैठ गया।
तभी टिंकू को अपने मित्र का रोता हुआ चेहरा नजर आया। वह दौड़कर दुकान पर गया और निवेदन करके चॉकलेट वापस कर बीस रुपए लेकर अपने मित्र को ढूँढने लगा। तभी उसे मित्र रमेश दिखाई दिया। उसने तुरन्त बीस रुपए वापस कर दिये और बोला-, "अब मित्र देर न करो! ये बीस रुपए तुम्हारे ही हैं। मुझे पड़े मिले थे।"
रमेश ने टिंकू को गले लगा लिया।
बिना कोई सवाल किए दवाई लेने के लिए रमेश दौड़ पड़ा। उसे उसकी माँ की बहुत चिन्ता थी।

संस्कार सन्देश- 
हमें हमेशा नेक खयाल रखना चाहिए।

लेखिका-
शमा परवीन 
बहराइच (उत्तर प्रदेश)
कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन-
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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