धरा को सजाना

अब करना ना कोई बहाना,

वृक्षों से धरा को सजाना।


वृक्ष लगाएँ सब मिलकर,

इनके बिना हम जाएँगे मर।

क्यों समझे ना इतना जमाना?

बिन वृक्षों के जग है वीराना।

अब करना ना........


सूर्यदेव ने कहर है बरसाया,

भीषण गर्मी में हमको तड़पाया।

की जो गलती ना अब दोहराना,

कही पड़ जाए हमें ना पछताना।

अब करना ना........


कूलर, एसी अब काम ना आए,

बिन बिजली ये हमको चिड़ाए।

समझदारी जरा सी दिखाना,

पेड़ पौधों से हाथ मिलाना।

अब करना ना.......…


पशु-पक्षी भी तड़पने लगे हैं,

भूख प्यास से बिलखने लगे हैं।

यदि धरा पर है जीवन बचाना,

पेड़-पौधों से प्रेम है जताना।

अब करना ना........


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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