पिता

 पिता!!

क्या होते हैं.....?


जो सह कर लू -थपेड़े

करता है श्रम दिन- रात

ताकि सुकून से रह सके 

उसकी औलाद बेफिक्र...

वो होते हैं पिता....


जोड़ पाई -पाई...

करते जो संचय ...

भुला अपने अरमां...

बिटिया की खुशियों के लिए..

जो करते अपने ही अंश का

कन्यादान.....ऐसे महादानी

वो होते हैं पिता......


विदा होते ही ...

जो रोते हैं फूट फूटकर..

बंद किवाड़ों में.....

कहीं कोई देख न लें

..

ऐसे हिम्मती... साहसी

वो होते हैं पिता.....


लांघ देहरी जब ..

विदा हो जाती है लाडली

हर पल उसको दुआओं में..

जो याद करते हैं...

वो होते हैं पिता....


पिता मेरे अभिमान..

मेरा स्वाभिमान......

जब भी घिरी अवसादों में...

बन गीता के श्लोक..

बढ़ाते रहे मेरा  मान....

वो होते हैं पिता.......


क्या लिखूँ ..अपने 

जज़्बातों को मैं..?

मेरी हर खुशियों ....

हर अरमानों की मंजिल

में रंग बनकर जो घुल जाते हैं

वो होते हैं पिता........


बस यही अरमां ....

यही आरजू है मेरी......

जब भी जन्म लूँ मैथिली

बन इस जहां में.......

मेरे जनक ..सिर्फ़ 

आप हो ..सिर्फ़ आप हो....

आप ही हो मेरे पिता........

                                   

रचयिता

उषा किरन पांडेय,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय शिहोरगढ़,

विकास खण्ड-एत्मादपुर,

जनपद-आगरा। 



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