धरती को हरा-भरा बनाओ
दिनों दिन बढ़ रहा है,
धरा का तापमान।
झुलस रहे हैं पशु-पक्षी,
जो है बिल्कुल नादान।।
तरुवर की छाया न दिखती,
और न वन, उपवन देखते।
आधुनिकता के रंग प्रकृति में,
अब सभी जगह हैं बिखरे।।
मानव तूने स्वार्थ की खातिर,
प्रकृति से खिलवाड़ किया।
हरे पेड़-पौधों को काटा,
और जंगलों को साफ किया।।
अब प्रकृति ने भी अपना,
रौद्र रूप दिखाया है।
तापमान हो रहा अनियन्त्रित,
सबके जीवन पर संकट छाया है।।
अपनी गलतियों से सीख लेकर,
पेड़ पौधे धरा पर खूब लगाओ।
सबके जीवन में आएँगी खुशियाँ,
बस धरती को हरा-भरा बनाओ।।
रचनाकार
मृदुला वर्मा,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमरौधा प्रथम,
विकास खण्ड-अमरौधा,
जनपद-कानपुर देहात।
Comments
Post a Comment