सपनों की उड़ान

सपनों की दुनिया मुन्नू की,

कितनी लगती प्यारी है,

कितनी लगती न्यारी है।


1-कहीं बना षटकोण, त्रिभुज तो,

   कहीं रॉकेट निराला है।

   तारों के विकट जाल से,

   अंतरिक्ष लगता प्यारा है।


2- उलट-पलट जब कॉपी देखी,

    टीचर ने भी सराहा है।

    मुन्नू के मनभावन चित्रों ने,

    उसका भविष्य दिखाया है।


3- कभी इस प्लेन से उड़कर मैं,   

    बादल की सैर पे जाऊँगा।

    सच कर दूँगा सारे सपने,

    पढ़ -लिख नाम कमाऊँगा।


   सपनों की दुनिया मुन्नू की,

   कितनी लगती प्यारी है,

   कितनी लगती न्यारी है।


रचयिता

कुसुम शर्मा,

सहायक अध्यापक,

कंपोजिट विद्यालय कन्या जैतपुर,

विकास खण्ड-जैतपुर,

जनपद-आगरा।



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