पिता का गुरूर
बाहें जिनके खिलखिलाते सपने,
कंधे सवारी-अटारी, है याद हमें।
बचपन में खेले खेल अनगिनत,
बच्चे बन जाते थे, जो साथ में।
बच्चों को छांव में महफूज रखकर,
खुद जलते, ज़माने की कड़ी धूप में।
क्या आपने कभी देखे हैं ऐसे फरिश्ते,
यहाँ धरती पर भगवान पिता रूप में।
वह डाँट- फटकार नहीं थी जनाब,
अंधेरी राहों पर चलने की रोशनी थी।
वो गुस्से के पीछे छिपा लाड़- प्यार,
हर एक बात में हमारी ही भलाई थी।
हर किसी की ख्वाहिशों का पिटारा,
उठाये, मुस्काते निकलते सुबह घर से।
घर आँगन की हर कोना, ईंट -ईंट,
संघर्षों की कहानी कहते हम से।
हर औलाद के जीवन का दीपक,
जिससे रोशन उसका सारा जहां।
सारे रिश्ते-नाते जिसके दम से,
ऐसी हिम्मत और अभिमान कहाँ।
छू लेना तुम इस जहां में ऊँचाइयों को,
तजुर्बों और त्याग को उनके याद रखना।
करना कर्म कुछ ऐसे कि माँ की शान,
पिता का गुरूर और सम्मान बन जाना।
रचयिता
जया चौधरी,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय बलखिला मलारी,
विकास खण्ड-जोशीमठ,
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।
🙏🙏wahh
ReplyDeleteAti sundar👌👌
ReplyDeleteVeryy nice poem
ReplyDelete😍😍😍😍😍
ReplyDeleteNice👌👌👌
ReplyDelete🙏👍
ReplyDeleteBahut he sundar rachna ha👍
ReplyDeleteNice poem 🎉
ReplyDeleteबहुत सुंदर कृति। पिता के संघर्ष का मार्मिक चित्रण। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआप सभी आदरणीयों के प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार 🙏🙏🙏🌷🌷🌷🌹🌹
ReplyDeleteAwesome poem👍👍🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना की है mam आपने
ReplyDeleteछू लेना तुम इस जहां में ऊँचाइयों को,
ReplyDeleteतजुर्बों और त्याग को उनके याद रखना।
करना कर्म कुछ ऐसे कि माँ की शान,
पिता का गुरूर और सम्मान बन जाना।
बहुत ही आदर्श पंक्तियां हैं जो एक पिता के द्वारा अपने पूर्व अनुभवों व त्याग को दृष्टिगत रखकर अपने बच्चो से की गई आकांक्षा को जाहिर करती हैं। A big salute for him.....