ठीक है

बहुत होई गवा खेती बारी बप्पा
अब हमहूँ लवट के न आएँगे।

रोज एमडीएम खाएँगे।
सरकारी स्कूल में पढ़ने जाएँगे।                     
ठीक है।

 कितना बढ़िया पढ़ाई भईल।
 नमवा हमार ना लिखाई गईल। 
ठीक है।
 रोज-रोज गाँव में पंचायत भाईल।
 प्रधान भी एक रोज समझाई गइल। 
ठीक है।

 पर बप्पा हमार गांजा में मस्त
कहाँ समझ ओ पाएँगे ।
रोज एमडीएम खाएँगे।
 सरकारी स्कूल में पढ़ने जाएँगे। 
ठीक है।

गर्मी के दीन रहल, सूरज तपत रहल।
मास्टर साहब एक-एक लइका खोजत रहल।     
ठीक है।
पसीना से तर रहल कौनों ना मिलत रहल।   
 गाँव में एकौ पागलायल कुकुर रहल।
मास्टर के काट लेहल खून से तर रहल।                 
ठीक है ।

गुरु कै ई अपमान अब हम नहीं सह पाएँगे ।
रोज एमडीएम खाएँगे।
 सरकारी स्कूल में पढ़ने जाएँगे। 
ठीक है।

सेब बा, अनार बा, दूध गरम-गरम बा।
रोज-रोज ताजा एमडीएम बनत बा।                         
ठीक है।
 दाल बा, भात बा, कबहूँ पनीर बा
 और भोजन तहरी तौ बहुतै लाजवाब बा।                     
ठीक है।
 खून बढ़ावे खातिर आयरन के गोली बा।।         
खा पी के हट्टे-कट्टे हमहूँ सैनिक बन जाएँगे।
रोज एमडीएम खाएँगे।
देश का मान बढ़ाएँगे।

खेल के सामान बा, किताबन  कै भरमार बा।
 स्वेटर बा, ड्रेस बा, जूता औ मोजा बा।                           ठीक है।
 पढ़ाई लाजवाब बा, नवाचार के साथ बा।
सबै गुरु कै हमरा ऊपर आशीर्वाद बा।                         
ठीक है।
 पढ़ लिख कै हमहूँ  कलेक्टर बन जाएँगे।
 रोज एमडीएम खाएँगे।
 सरकारी स्कूल में पढ़ने जाएँगे।                 
ठीक है।

बहुत होई गवा खेती बारी बप्पा
अब हमहूँ लवट के न आएँगे।

रोज एमडीम खाएँगे।
सरकारी स्कूल में पढ़ने जाएँगे।               
ठीक है।

रचयिता
ब्रजेश कुमार द्विवेदी,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हृदयनगर,
जनपद-बलरामपुर।

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