जुगनू की हमदर्दी
एक बुलबुल थी बहुत ही प्यारी,
दाना चुगने जाती थी।
वापस आकर बच्चों को अपने,
प्यार से वो खिलाती थी।।
एक दिन उसको दाना ढूँढते,
बहुत देर हो गया।
जब तक उसको दाना मिलता,
घना अंधेरा छा गया।।
वहीं पेड़ पर बैठकर बुलबुल,
जोर-जोर से रोने लगी।
बच्चे भूखे प्यासे होंगे,
मैं तो घर पहुँची ही नहीं।।
उसकी आवाज सुनकर के,
एक जुगनू आया पास।
आकर बोला-प्यारी बहना
तुम क्यों हो इतनी उदास।।
समस्या जानकर बुलबुल की,
जुगनू ने ढांढस बँधाया।
बुलबुल को घर तक पहुँचाने की,
जुगनू ने फिर कसम उठाया।।
एक छोटा सा कीड़ा जुगनू,
दीपक बनकर जलने लगा।
बुलबुल को रौशनी दिखाता,
जुगनू आगे बढ़ने लगा।।
जुगनू बुलबुल को घर पहुँचाकर,
वापस आया अपने धाम।
बच्चों किसी की सहायता करना,
है सबसे अच्छा काम।।
रचयिता
दाना चुगने जाती थी।
वापस आकर बच्चों को अपने,
प्यार से वो खिलाती थी।।
एक दिन उसको दाना ढूँढते,
बहुत देर हो गया।
जब तक उसको दाना मिलता,
घना अंधेरा छा गया।।
वहीं पेड़ पर बैठकर बुलबुल,
जोर-जोर से रोने लगी।
बच्चे भूखे प्यासे होंगे,
मैं तो घर पहुँची ही नहीं।।
उसकी आवाज सुनकर के,
एक जुगनू आया पास।
आकर बोला-प्यारी बहना
तुम क्यों हो इतनी उदास।।
समस्या जानकर बुलबुल की,
जुगनू ने ढांढस बँधाया।
बुलबुल को घर तक पहुँचाने की,
जुगनू ने फिर कसम उठाया।।
एक छोटा सा कीड़ा जुगनू,
दीपक बनकर जलने लगा।
बुलबुल को रौशनी दिखाता,
जुगनू आगे बढ़ने लगा।।
जुगनू बुलबुल को घर पहुँचाकर,
वापस आया अपने धाम।
बच्चों किसी की सहायता करना,
है सबसे अच्छा काम।।
रचयिता
मनोहर लाल गौतम,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कनिगवाॅ,
विकास खंड -बीसलपुर,
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