कोई तस्वीर नहीं उस पल की
कोई तस्वीर नहीं उस पल की
आँखों में सब बसा हुआ है
नयन अश्रु मग्न, मन व्यथित सा
कंठ भी सबका रुँधा हुआ है
कहने की लालसा बहुत कुछ
पर शब्दों में वोह बँध ना सका है
कैसे लिखूँ मै उन क्षणों को
जो शब्द जाल से परे हुए हैं
कैसे कहूँ व्यथा मैं मन की
अश्रु इधर भी भरे हुए हैं
जब आ यूँ छाती से लिपट गए तुम
अंक में तुमको भर लिया था
जब आ मुझमें ही सिमट गए तुम
सबने यूँ मुझको घर लिया था
रुदन था, आहें थीं, और सिसकियाँ बँधी हुई
नन्हें मन सब व्याकुल थे, जैसे साँसें हो थमी हुई
दूर यूँ मुझसे होने की पीड़ा मन में कहीं छुपी थी
अश्रु भेद सब कह रहे थे शब्दों की आवश्यकता ना थी
समझ ना आया मुझको भी कुछ
क्या कहूँ क्या उनको समझाऊँ
कैसे कहूँ भेद मैं मन का
प्रेम है कितना बतलाऊँ
तुम दूर अवश्य ही जा रहे हो
पर दूर ना तुमसे हो पाऊँ
मन से मन के तार बँधे हैं
स्नेह में हम- तुम यूँ सने हैं
कोई तस्वीर नहीं उस पल की
आँखों में सब बसा हुआ है
नयन अश्रु मग्न, मन व्यथित सा
कंठ भी सबका रुँधा हुआ है
तुम बच्चे बहुत ही न्यारे हो
तुम जान से मुझको प्यारे हो
दुख मुझको भी है दूरी का
पर भविष्य के खातिर सूली क्या
कामना यही है मेरी बस
की अब आगे बढ़ते जाओ तुम
सीढ़ी सफलता की यूँही
पल-पल चढ़ते जाओ तुम
आदर्शों पे चलना तुम
झुकना ना भ्रष्टों के आगे
पल-पल चौकन्ना रहना यूँ
रहना स्वप्न से सदा ही जागे
उम्मीद बहुत है मुझको तुमसे
तुम मेरा मान बढ़ाओगे
दिन रात परिश्रम कर के तुम
मंज़िल अपनी पा जाओगे
कोई तस्वीर नहीं उस पल की
आँखों में सब बसा हुआ है
नयन अश्रु मगन, मन व्यथित सा
कंठ भी सबका रुँधा हुआ है
आशीष सदा है साथ तुम्हारे
तुम एक अच्छे मनुष्य बनोगे
तुमसे ही बदलेगा समाज
एक नया अध्याय लिखोगे
मैं तब बस बूढ़ी आँखों से
तुम सबको देख निहारुँगी
देख सफलता तुम सबकी
मै बार बार बलिहारुँगी
कोई तस्वीर नहीं उस पल की
आँखों में सब बसा हुआ है
नयन अश्रु मगन, मन व्यथित सा
कंठ भी सबका रुँधा हुआ है !!!
रचयिता
जैतून जिया,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय गाजू,
विकास खण्ड-कछौना,
जनपद-हरदोई।
आँखों में सब बसा हुआ है
नयन अश्रु मग्न, मन व्यथित सा
कंठ भी सबका रुँधा हुआ है
कहने की लालसा बहुत कुछ
पर शब्दों में वोह बँध ना सका है
कैसे लिखूँ मै उन क्षणों को
जो शब्द जाल से परे हुए हैं
कैसे कहूँ व्यथा मैं मन की
अश्रु इधर भी भरे हुए हैं
जब आ यूँ छाती से लिपट गए तुम
अंक में तुमको भर लिया था
जब आ मुझमें ही सिमट गए तुम
सबने यूँ मुझको घर लिया था
रुदन था, आहें थीं, और सिसकियाँ बँधी हुई
नन्हें मन सब व्याकुल थे, जैसे साँसें हो थमी हुई
दूर यूँ मुझसे होने की पीड़ा मन में कहीं छुपी थी
अश्रु भेद सब कह रहे थे शब्दों की आवश्यकता ना थी
समझ ना आया मुझको भी कुछ
क्या कहूँ क्या उनको समझाऊँ
कैसे कहूँ भेद मैं मन का
प्रेम है कितना बतलाऊँ
तुम दूर अवश्य ही जा रहे हो
पर दूर ना तुमसे हो पाऊँ
मन से मन के तार बँधे हैं
स्नेह में हम- तुम यूँ सने हैं
कोई तस्वीर नहीं उस पल की
आँखों में सब बसा हुआ है
नयन अश्रु मग्न, मन व्यथित सा
कंठ भी सबका रुँधा हुआ है
तुम बच्चे बहुत ही न्यारे हो
तुम जान से मुझको प्यारे हो
दुख मुझको भी है दूरी का
पर भविष्य के खातिर सूली क्या
कामना यही है मेरी बस
की अब आगे बढ़ते जाओ तुम
सीढ़ी सफलता की यूँही
पल-पल चढ़ते जाओ तुम
आदर्शों पे चलना तुम
झुकना ना भ्रष्टों के आगे
पल-पल चौकन्ना रहना यूँ
रहना स्वप्न से सदा ही जागे
उम्मीद बहुत है मुझको तुमसे
तुम मेरा मान बढ़ाओगे
दिन रात परिश्रम कर के तुम
मंज़िल अपनी पा जाओगे
कोई तस्वीर नहीं उस पल की
आँखों में सब बसा हुआ है
नयन अश्रु मगन, मन व्यथित सा
कंठ भी सबका रुँधा हुआ है
आशीष सदा है साथ तुम्हारे
तुम एक अच्छे मनुष्य बनोगे
तुमसे ही बदलेगा समाज
एक नया अध्याय लिखोगे
मैं तब बस बूढ़ी आँखों से
तुम सबको देख निहारुँगी
देख सफलता तुम सबकी
मै बार बार बलिहारुँगी
कोई तस्वीर नहीं उस पल की
आँखों में सब बसा हुआ है
नयन अश्रु मगन, मन व्यथित सा
कंठ भी सबका रुँधा हुआ है !!!
रचयिता
जैतून जिया,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय गाजू,
विकास खण्ड-कछौना,
जनपद-हरदोई।
Nice
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