एक कदम जीवन की ओर
कक्षा में अध्यापिका जी ने प्रवेश किया तो सभी बच्चों ने उनका अभिवादन किया और शांति से बैठ गए। अध्यापिका जी ने छात्र उपस्थिति पंजिका निकाली और बच्चों की उपस्थिति लेना आरंभ किया... अर्चना... भावना... दीपक... रीतेश।
अरे रीतेश नही आया क्या आज? अध्यापिका जी ने दीपक से पूछा। दीपक रीतेश के घर के पास ही रहता था। दीपक ने कहा-"नहीं मैडम जी, आज वो बहुत उदास था।" इस पर अध्यापिका जी ने पूछा "वो उदास क्यों था?" तब दीपक ने बताया कि मैडम जी कल उसकी गाय की तबियत अचानक खराब हो गई थी, उसके काका गाय को अस्पताल ले गये लेकिन वो रास्ते मे ही मर गयी। उनके घर एक ही गाय थी, वह बहुत दूध देती थी, जिसे बेचकर उनका कुछ गुजारा चल जाता था। यही सब बातों को लेकर रीतेश बहुत दुखी है।
अध्यापिका जी ने दीपक से पूछा "लेकिन अचानक उसकी गाय को क्या हो गया था?" दीपक ने बताया कि अस्पताल के डॉक्टर बता रहे थे कि रीतेश की गाय ने कुछ गलत खा लिया था। हमारे गाँव मे कूड़े के ढेर पर सब लोग हर तरह का कचड़ा फेंक देते हैं, उसमे पॉलीथीन भी होती है, वही पॉलीथीन रीतेश की गाय की श्वास नली मे फँस गयी, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। यह सुनकर कक्षा मे सभी को बहुत दुख हुआ।
फिर अध्यापिका जी ने सब बच्चों को समझाया कि हमे कचड़ा भी सोच समझ के फेंकना चाहिए। हमे सूखे और गीले कचड़े को अलग अलग फेंकना चाहिए। तब भावना ने पूछा-"मैडम जी, ये सूखा और गीला कचड़ा क्या होता है?" अध्यापिका जी ने समझाया कि सूखा कचड़ा वो होता है जो जैविक गतिविधियों से अपघटित नही होता जैसे कि पॉलीथीन, प्लास्टिक आदि, इनको हमें नीले कूड़ेदान मे फेंकना चाहिए व गीला कचड़ा वो होता है जो जैविक गतिविधियों से अपघटित हो जाता है, जैसे सब्जी फल आदि के छिलके, इनको हमें हरे कुड़ेदान मे फेंकना चाहिए।
यदि हम इस बात का ध्यान रखते तो रीतेश की गाय इस तरह नहीं मरती। सब बच्चों को अध्यापिका जी की बात समझ में आ गयी और सबने कहा कि आज से सूखा कचड़ा नीले कुड़ेदान मे और गीला कचड़ा हरे कूड़ेदान में
"आज से और अभी से एक कदम जीवन की ओर"
लेखिका
डॉ0 अनुपमा अग्रवाल,
सहायक अध्यापिका,
कन्या प्राथमिक विद्यालय मगरवारा,
विकास खण्ड-बंगरा,
जनपद-झाँसी।
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