पृथ्वी क्रंदन

मैं हूँ पृथ्वी नीली गोल,
सभी को समझना है मेरा मोल।
माँ की मुझको उपमा देते,
फिर भी मेरा दोहन करते।
मुझ धरती की यही पुकार,
न उजाड़ो यूँ मेरा सँसार।
भेद न करती ऊँच नीच का,
सबका बोझ उठाती हूँ।
जाति, धर्म से ऊपर उठकर,
सबको गले लगाती हूँ।
खाने को मैंने अन्न दिया,
पीने को दिया है पानी।
साँसें दी तुमको जीने को,
फिर भी कीमत ना जानी।
अभी वक्त है रुक भी जाओ,
मेरा आस्तित्व जरा बचाओ।
तुम सब हो मेरी संतान,
सबको कराओ इसका ज्ञान।

रचयिता 
गीता यादव,
प्रधानाध्यपिका,
प्राथमिक विद्यालय मुरारपुर,
विकास खण्ड-देवमई,
जनपद-फ़तेहपुर।

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