महामानव महावीर
करुणा और अहिंसा का पथ,
जग को जिसने दिखलाया।
जीत आत्म को जिन होकर,
फिर मुक्ति का पंथ दिखाया।
वर्धमान थे बाल्यकाल में,
जो कुण्डग्राम में जन्मे थे।
त्रिशला माँ सिद्धार्थ पिता थे,
क्षत्रिय कुल के वंशज थे।
भेदभाव था जनमानस में,
छल पाखंडों का प्रचलन था।
और यज्ञों में पशुबलि का,
होता हिंसक आयोजन था।
चिन्तन में जीवन के कुछ,
उठते प्रश्न सतत अन्तर थे।
करुणा त्याग तपोमयता,
जिनके मिलते उत्तर थे।
हल पाने की मन जिज्ञासा थी,
तप तितिक्षा की अभिलाषा थी।
यद्यपि थे सुख साधन सब,
अन्तर में विरक्तिमय आशा थी।
त्याग मोह के बंधन सब,
निज अग्रज से आज्ञा ली।
तीस बरस की वय थी जब,
तप को संकल्पित प्रज्ञा की।
कठिन तपस्या वन प्रान्तर में,
कर कष्ट सहन वे करते थे।
मन की सत्ता को शून्य बनाया,
शमित चित्त वृत्तियाँ करते थे।
सत्य बोध कर हुए जितेंद्रिय,
फिर परम सत्य को बतलाया।
जैन पंथ के जो सूत्र निराले,
सबको सम्यक पंथ बताया।
श्रद्धा से नमन उन्हें है मेरा,
जग में करुणा भाव जगाया।
सत्य अहिंसा शाश्वत पथ हैं,
मानवता को सत्य बताया।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
जग को जिसने दिखलाया।
जीत आत्म को जिन होकर,
फिर मुक्ति का पंथ दिखाया।
वर्धमान थे बाल्यकाल में,
जो कुण्डग्राम में जन्मे थे।
त्रिशला माँ सिद्धार्थ पिता थे,
क्षत्रिय कुल के वंशज थे।
भेदभाव था जनमानस में,
छल पाखंडों का प्रचलन था।
और यज्ञों में पशुबलि का,
होता हिंसक आयोजन था।
चिन्तन में जीवन के कुछ,
उठते प्रश्न सतत अन्तर थे।
करुणा त्याग तपोमयता,
जिनके मिलते उत्तर थे।
हल पाने की मन जिज्ञासा थी,
तप तितिक्षा की अभिलाषा थी।
यद्यपि थे सुख साधन सब,
अन्तर में विरक्तिमय आशा थी।
त्याग मोह के बंधन सब,
निज अग्रज से आज्ञा ली।
तीस बरस की वय थी जब,
तप को संकल्पित प्रज्ञा की।
कठिन तपस्या वन प्रान्तर में,
कर कष्ट सहन वे करते थे।
मन की सत्ता को शून्य बनाया,
शमित चित्त वृत्तियाँ करते थे।
सत्य बोध कर हुए जितेंद्रिय,
फिर परम सत्य को बतलाया।
जैन पंथ के जो सूत्र निराले,
सबको सम्यक पंथ बताया।
श्रद्धा से नमन उन्हें है मेरा,
जग में करुणा भाव जगाया।
सत्य अहिंसा शाश्वत पथ हैं,
मानवता को सत्य बताया।
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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