आपके प्रेम में प्रभु

आपके प्रेम में प्रभु!
आपकी इस सृष्टि में,
मैं पा सकूँ, भाव का अमृत।
कर सकूँ निष्काम कर्म,
कर सकूँ भक्ति आपकी।
जो प्रारब्ध से है नियत,
अतीत से अब तक चलते,
जीवन की राह बढ़ते।
विशाल गगन के नीचे,
विस्तृत धरा के अंचल पर।
मैं मुग्ध होता हूँ आपके,
चिर शाश्वत सौन्दर्य से।
बार-बार देखता हूँ जिन्हें,
वे सब आपने ही बनाए हैं।
आप ने ही उनमें सब,
प्रकृति के रंग बिखराए हैं।
मेरे हृदय में गुँजित होता,
मधुरतम संगीत सा स्वर।
मैं भावों में होकर विभोर,
सुनता हूँ जिसे क्षण-क्षण।
   मेरे प्रभु! मुझे कर दो,
विकारों के बंधन से मुक्त।
प्रेम के रसबूँदों की कर वृष्टि,
पवित्रता की कर दो संयुक्ति।
आपके चिर सौन्दर्य से विमोहित,
आपकी चेतना आत्म में
 मेरे हो समाहित।
मैं निरन्तर गाता रहूँ चुपचाप,
आपके अनंत यश का,
असीम स्वरूप का।
अन्तराल की गहराई से,
मधुरिम गान।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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