कोरोना वायरस (प्रकृति का रौद्र रूप)
आज
पूरी दुनिया में लगभग सभी देश या तो कोरोना वायरस के प्रकोप को झेल रहे
हैं या तो इसके कहर को देखकर डरे सहमे जिंदगी गुजार रहे हैं। इस भयावह
स्थिति के बारे में एक तथ्य यह सामने आ रहा है कि यह चीन के वुहान शहर से
प्रारम्भ हुआ और इसके बारे में डीन कूंट्ज़ ने 10 मई 1981 को प्रकाशित अपनी
पुस्तक "द आईज ऑफ डार्कनेस" में भी वर्णित किया है जो वुहान-400 नाम से
जाना जाता था और इसके सिम्पटम्स कोरोना वायरस से मिलते-जुलते हैं।
दूसरा तथ्य यह भी है कि यह वायरस चमगादड़ और साँप जैसे जीव-जंतुओं के शरीर में पाया जाता है, जो चीन के सर्वभक्षी लोगों के द्वारा इन जीव-जंतुओं और कीड़े-मकोड़ो को खाने के कारण मानव शरीर तक पहुँच गया और विश्व में एक महामारी बनकर सामने आया। इसके बारे में खास बात यह है कि यह केवल मनुष्यों को ही हानि पहुँचाता है, पशुओं पर इसका प्रभाव नगण्य है।
उपरोक्त तथ्यों में से कोई भी कारण सही हो लेकिन वास्तविक कारण तो यही दर्शित हो रहा है कि प्रकृति के साथ मानव द्वारा खिलवाड़ ही आज उस पर इस कहर का कारण बन गया है और आगे विनाश का कारण भी बन सकता है। मानव द्वारा अपने खान-पान, रहन-सहन, में किये गए बदलावों के कारण ही मनुष्य को आज प्रकृति का रौद्र रूप देखने को मिल रहा है।
दूसरा तथ्य यह भी है कि यह वायरस चमगादड़ और साँप जैसे जीव-जंतुओं के शरीर में पाया जाता है, जो चीन के सर्वभक्षी लोगों के द्वारा इन जीव-जंतुओं और कीड़े-मकोड़ो को खाने के कारण मानव शरीर तक पहुँच गया और विश्व में एक महामारी बनकर सामने आया। इसके बारे में खास बात यह है कि यह केवल मनुष्यों को ही हानि पहुँचाता है, पशुओं पर इसका प्रभाव नगण्य है।
उपरोक्त तथ्यों में से कोई भी कारण सही हो लेकिन वास्तविक कारण तो यही दर्शित हो रहा है कि प्रकृति के साथ मानव द्वारा खिलवाड़ ही आज उस पर इस कहर का कारण बन गया है और आगे विनाश का कारण भी बन सकता है। मानव द्वारा अपने खान-पान, रहन-सहन, में किये गए बदलावों के कारण ही मनुष्य को आज प्रकृति का रौद्र रूप देखने को मिल रहा है।
मनुष्य आज की वैज्ञानिकीकरण जिंदगी की आपाधापी में इतना बेखबर हो गया है कि वह विगत कुछ वर्षों में पर्यावरण में आये बदलावों पर ध्यान नहीं दे रहा है। पिछले कुछ वर्षों में आये बदलाव ( जैसे- तापमान वृद्धि, जल संकट, प्रदूषण, वनों का अधिकाधिक कटाव आदि) पर ध्यान दिया जाए तो स्पष्ट होता है कि आज मानव जीवन जिस संकट से जूझ रहा है वह भविष्य में आने वाले संकटों की तुलना में कुछ भी नहीं है।
प्रकृति में दिखने वाला एक छोटे से छोटा जीव चींटी से लेकर विशालकाय व्हेल आदि तक का जीवन प्रकृति में होने वाले जीवन चक्र के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं और सर्वविदित है कि इस जीवन चक्र में किसी भी जीव के अलग होने से भयावह स्थिति उत्पन्न होगी। परन्तु आज मनुष्य अपने क्षणिक स्वादापूर्ति के लिए प्रकृति प्रदत्त भोज्य पदार्थों को छोड़कर तरह-तरह के जीव -जन्तुओं को माँसाहार के लिए प्रयोग करने लगा है।
जिससे प्रकृति की खाद्म श्रृंखला पूर्ण रुपेण नष्ट होती नजर आ रही है और इन सब छोटे-छोटे संकटों के बावजूद भी यदि मनुष्य नहीं सावधान हुआ और अपनी दिनचर्या, खान-पान, रहन-सहन को सही मार्ग पर नहीं लाया तो वह दिन दूर नहीं जब मनुष्य भी डायनासोर जैसे प्राणियों की तरह विलुप्त हो जाएगा ।
लेखकरामू सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय-बघेलापुर,
विकास खण्ड-सिराथू,
प्राथमिक विद्यालय-बघेलापुर,
विकास खण्ड-सिराथू,
जनपद-कौशाम्बी।
सारगर्भित और सामयिक लेख हेतु बधाई...💐💐💐
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