भारतीय डाकघर
डाक सेवा नाम है मेरा,
ख़बर पहुँचाना काम मेरा।
न ही हाथ, न ही पैर हैं पास मेरे,
फिर भी दौड़कर आ जाती हूँ पास तेरे।
31 मार्च मेरा पदार्पण,
तब से शुरू किया हमने संदेशों का अर्पण।
सन 1774 ईस्वी का था वो वर्ष,
जब लाया गया मुझे भारत के फ़र्श।
हुआ पदार्पण कोलकाता के वेश में,
धीरे-धीरे फैल गयी मैं पूरे भारत देश में।
आना-जाना आना-जाना,
सब का हाल सबको सुनाना।
धन्य हो वारेन हेस्टिंग्स,
जिन्होंने की मेरी टेस्टिंग।
दिया मुझे एक घर का आकार,
जिससे हुआ भारत में डाकघर का सपना साकार।
रचयिता
बबलू सोनी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कसराँव,
विकास खण्ड-हथगाम,
जनपद-फतेहपुर।
ख़बर पहुँचाना काम मेरा।
न ही हाथ, न ही पैर हैं पास मेरे,
फिर भी दौड़कर आ जाती हूँ पास तेरे।
31 मार्च मेरा पदार्पण,
तब से शुरू किया हमने संदेशों का अर्पण।
सन 1774 ईस्वी का था वो वर्ष,
जब लाया गया मुझे भारत के फ़र्श।
हुआ पदार्पण कोलकाता के वेश में,
धीरे-धीरे फैल गयी मैं पूरे भारत देश में।
आना-जाना आना-जाना,
सब का हाल सबको सुनाना।
धन्य हो वारेन हेस्टिंग्स,
जिन्होंने की मेरी टेस्टिंग।
दिया मुझे एक घर का आकार,
जिससे हुआ भारत में डाकघर का सपना साकार।
रचयिता
बबलू सोनी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कसराँव,
विकास खण्ड-हथगाम,
जनपद-फतेहपुर।
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