काहो कॅरोना काल
काहो कॅरोना काल, तूँ इ काउ किहल,
घर ही में कारावास करवाइ दिहल।
रोज-रोज स्कूली लइकन में रहत रहली,
सथवां में ओनके सीखत सिखावत रहली।
प्यार ओनकर पावत अउर देत रहली,
पढ़ही-पढावइ में मन जात रहल बहली।
ओनहूँ से हमका तूँ बिछुड़ाइ दिहल,
काहो कॅरोना काल, तूँ इ काउ किहल।
रोज स्कूल आवइ खातिर ओन्है कहत रहली
न अउले पर दुइ-चार बात कहत रहली
अब तो कॅरोना काल अइसन तूँ किहल
ओनहूँ के रोकल अउ हमहूँ के रोकल
रोज आवइ जाय क रफ्तार रोकि दिहल
भण्डारा रोकल, इफ्तार रोकि दिहल
लइकन के परीक्षा क बहार रोकि दिहल
काहो कॅरोना काल तूँ इ काउ किहल।
जिनगी में अइसन हम कबहूँ न देखली,
शासन रहै जाय खातिर, शसनै से रुकली।
घरवै अब दुनिया संसरवा भइल बा,
इ कइसन क अब समइया आइल बा।
गनीमत बा की नेट क जबाना आइल बा,
नेटवै अब त पूरी दुनिया भइल बा।
चलही में होई हार, अउर रुकल त जितल,
काहो कॅरोना काल तूँ इ काउ किहल।
जै हिन्द जै भारत बृन्द
रचयिता
विजय मेहंदी,
सहायक अध्यापक,
KPS(E.M.School)Shudanipur, Madiyahu,
जनपद-जौनपुर।
घर ही में कारावास करवाइ दिहल।
रोज-रोज स्कूली लइकन में रहत रहली,
सथवां में ओनके सीखत सिखावत रहली।
प्यार ओनकर पावत अउर देत रहली,
पढ़ही-पढावइ में मन जात रहल बहली।
ओनहूँ से हमका तूँ बिछुड़ाइ दिहल,
काहो कॅरोना काल, तूँ इ काउ किहल।
रोज स्कूल आवइ खातिर ओन्है कहत रहली
न अउले पर दुइ-चार बात कहत रहली
अब तो कॅरोना काल अइसन तूँ किहल
ओनहूँ के रोकल अउ हमहूँ के रोकल
रोज आवइ जाय क रफ्तार रोकि दिहल
भण्डारा रोकल, इफ्तार रोकि दिहल
लइकन के परीक्षा क बहार रोकि दिहल
काहो कॅरोना काल तूँ इ काउ किहल।
जिनगी में अइसन हम कबहूँ न देखली,
शासन रहै जाय खातिर, शसनै से रुकली।
घरवै अब दुनिया संसरवा भइल बा,
इ कइसन क अब समइया आइल बा।
गनीमत बा की नेट क जबाना आइल बा,
नेटवै अब त पूरी दुनिया भइल बा।
चलही में होई हार, अउर रुकल त जितल,
काहो कॅरोना काल तूँ इ काउ किहल।
जै हिन्द जै भारत बृन्द
रचयिता
विजय मेहंदी,
सहायक अध्यापक,
KPS(E.M.School)Shudanipur, Madiyahu,
जनपद-जौनपुर।
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