चेतना

भान का मान जो बुद्धि हरै,   
शीश झुकै दुःख संकट भारी।
नींच कौ भाव बसै उर में,
ता जीव कौ जीवन नरक ते भारी
हर चीज़ कौ स्वाद चखे रसना,
रस पान के लोभ फँसी दुखियारी।
जीव कुकर्म फंद जीवन के,
कर्मन की गति जगते न्यारी।।
चतुर नारि या जीव कूं जनों,                   
पिय संग नारि करी हुशियारी।
त्यागि खसम सेज कुं लपकै,
लपकन नारि की कीन्ही खुआरी।।
या ठगिनी घट नटिनी के गुन,
बाँस चढ़ी मन मन मस्कानी।
खेल ख़तम यार बिसरि गए,
मूढ़ पकरि पीछे पछितानी।।
करत विनय करम गति साधौ,
सब पै आज कॉरोना भारी।
धीर धरौ ब्रजपाल छुपे कहाँ, 
मोर मुकुट चक्र सुदर्शन धारी।।

रचयिता
विनय कुमार चक्रवर्ती,
ए0 आर0 पी0 हिन्दी,
विकास खण्ड-इगलास,
जनपद-अलीगढ़।

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