माँ के नव रूपों को जानें हम

 त्राहि माम, त्राहि माम कर रहा जगत तमाम
      माँ - वचनों  के पालन से होता जीवन ललाम

माँ के नव रूपों को जानें हम,
आज्ञा में रह आशीष पावें हम।
        प्रथम रूप शैलपुत्री माँ,
        पर्वत जैसी शक्तिशाली माँ,
        शेर पे बैठ शत्रु संहारती,
        नारी गरिमा दर्शाती माँ।
द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी माँ,
ब्रह्मचर्य का महत्व बताती माँ,
सहज कार्य करती उसके,
ब्रह्मदिशा दिखलाती माँ।
               तृतीय रूप चंद्रघंटा माँ,
               सिंहनाद जब करती माँ,
               असुर काँपें, बुराईयाँ टापें,
               निश्छल पुकार सुन आती माँ।
चतुर्थ रूप  है कूष्मांडा माँ,
ब्रह्मांड रचना दिखलाती माँ,
शस्त्र -शास्त्र का समन्वय उसमें,
योगी बनो, कह मुस्काती माँ।
             पंचम रूप स्कंदमाता माँ,
              देती संदेश वीरता का माँ,
               कमलासन पर आती माँ,
               मन को सुमन बनाती माँ।
षष्ठ रूप कात्यायनी माँ,
हर आशा पूरी करती माँ,
माँ वचनों का पालन करता,
उसके समीप आ जाती माँ।
           सप्तम रूप कालरात्रि माँ,
             कालिमा हर लालिमा लाती माँ,
               यम-नियम  अनुपालन करता,
                 उसको अभय बनाती माँ।
अष्ठम् रूप महागौरी माँ,
सर्वकला कल्याणी माँ,
ऊर्जावान बनाकर सबको,
उनका परिपालन करती माँ।
          नवम रूप सिद्धिदात्री माँ,
          साधकों को साधन देती माँ,
          श्रेय सम्पदा ऊर्जा  देकर,
            उनका ऐश्वर्य बढ़ाती माँ।।

रचयिता 
प्रतिभा भारद्वाज,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यामिक विद्यालय वीरपुर छबीलगढ़ी,
विकास खण्ड-जवां,
जनपद-अलीगढ़।

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