दानवता को दूर भगाओ

चंदा माँ के माथ विराजे,
हाथ में सोहें शस्त्र-घंटा।
रूप तीसरा माँ दुर्गे का,
जय हो माता चन्द्र्घंटा।
कोरोना सा दुष्ट राक्षस,
घूम-घूम सबको ललकारे।
बन्द घरों में सारी दुनिया,
संकट से माँ तू ही उबारे।
रूका यकायक समय का पहिया,
गोते खाती जीवन नैया।
मन ही मन माँ तेरा सुमरन,
आओ बचा लो मेरी मैया।
नर नारी सब आहत दीखे,
भूखे घूमें बछड़ा गैयां।
उम्मीदें जग तुम से बाँधी,
हो नौका की तुम्हीं खिवैया।
क्या कर डाला कोरोना ने,
छूटा धीरज दइया-दइया।
वक़्त बुरा यह कैसा आया,
अलग- थलग रहें भैया-भैया।
आओ जल्दी अब आ जाओ,
इस संकट से मात बचाओ।
कोरोना से इस हंता को,
अपनी शक्ति सहर्ष दिखाओ।
सुन लो सबकी करूण पुकारें,
छोड़ के माँ सिंहासन आओ।
हार न होवे मानवता की,
दानवता को दूर भगाओ।
     
रचयिता
राजबाला धैर्य,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिरिया नारायणपुर,
विकास खण्ड-क्यारा, 
जनपद-बरेली।

Comments

  1. एक सुमरन ,एक करुण पुकार
    शब्दों का संकलन , उत्तम विचार।

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