अम्बे माँ तेरी वन्दना

घर-घर में हरियाली पड़ी अंबे माँ है हर्षित,
नव रुप में अंबे माँ घर को करती सुशोभित।

कोरोना से छाई बंदी लगतार,
न सजे मन्दिर, न लगे पंडाल।

लेकिन घर-घर में जगी ज्योत माँ की,
और घर-घर में सजे हैं माँ तेरे थाल।

जिस मन में जगे माँ की ज्योत,
वह जीवन हो शुद्धता से ओतप्रोत।
     
विश्व त्रस्त है छाई जो महामारी,
हर लो पीड़ा दूर करो बीमारी।
     
नौ दिन तेरा व्रत करेगा देश,
तू आ माता धरके कोई वेश।

स्वास्थ कर्मी, पुलिस कर्मी या सफाई कर्मी,
जैसे प्रतीक हैं बने तेरे ही सब आज,

निडर हो निभा रहे हरपल अपना फर्ज,
 है देश को उन सभी पर नाज।

माँ तुमसे है इतनी गुजारिश,
रखना उन पर कृपा ये है सिफारिश।

जगत जननी तू गरीब के दर पर जाना,
मददगार हाथ कोई उन तक पहुँचाना।

न तड़पे कोई भूख से, न हो लाचार,
माँ तू आकर के फिर लेना अवतार।

तेरे आने से हर्षित है दुनिया सारी,
हर ले नवदुर्गे तू सारी महामारी।

महिषासुर मर्दनी बनो या फिर काली,
तुम ही हो इस जीवन रूपी फुलवारी की माली।
 
फिर सज जाएँ मंदिर पंडाल,
गूँजे शंख और घंटाल

 हो चमत्कारी तेरा पगफेरा,
 गूँजे चहुँओर तेरा ही जयकारा।

रचयिता
नन्दी बहुगुणा,
प्रधानाध्यापक,
रा० प्रा० वि० रामपुर,
विकास खण्ड-नरेन्द्रनगर,
जनपद-टेहरी गढ़वाल,
उत्तराखंड।

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