गाँव
पड़ी मुसीबत आज तो अपना गाँव याद आया,
पैसों के खातिर जिसे मैं पहले भूल आया।
पढ़ाई और कमाई में मैं गया था भूल,
गाँव की शुद्ध हवा, पावन वहाँ की धूल।
माँ मेरी कहती थी यही अपना ठिकाना,
शहर में रहने के खातिर मैं करता सौ बहाना।
शहर में आज ना मालिक है ना कोई ठिकाना,
पैसों की चमक खत्म अब मैं हो गया बेगाना।
लौटा हूँ आज तो याद आया बचपन पुराना,
माँ के हाथों की रोटी और खेतों में जाना।
चलो आज फिर घर के पीछे सब्जी लगाएँगे,
मातृभूमि होती क्या अपने बच्चों को बताएँगे।
रचयिता
शहनाज बानो,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय भौंरी -1,
विकास क्षेत्र-मानिकपुर,
जनपद-चित्रकूट।
पैसों के खातिर जिसे मैं पहले भूल आया।
पढ़ाई और कमाई में मैं गया था भूल,
गाँव की शुद्ध हवा, पावन वहाँ की धूल।
माँ मेरी कहती थी यही अपना ठिकाना,
शहर में रहने के खातिर मैं करता सौ बहाना।
शहर में आज ना मालिक है ना कोई ठिकाना,
पैसों की चमक खत्म अब मैं हो गया बेगाना।
लौटा हूँ आज तो याद आया बचपन पुराना,
माँ के हाथों की रोटी और खेतों में जाना।
चलो आज फिर घर के पीछे सब्जी लगाएँगे,
मातृभूमि होती क्या अपने बच्चों को बताएँगे।
रचयिता
शहनाज बानो,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय भौंरी -1,
विकास क्षेत्र-मानिकपुर,
जनपद-चित्रकूट।
बहुत सुन्दर
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