कोरोना को मात
कोरोना को आज मनुज की,
सामाजिकता ना भाती है।
दूर रहो सावधान रहो,
आवाज़ यही बस आती है।।
अरस्तू का सामाजिक प्राणी,
जब संयुक्त परिवारों से खिन्न हुआ।
प्रकृति के पर्यावरण में,
अहं ब्रह्मास्मि बन भिन्न हुआ।।
लग रहा पर्यावरण परिवर्तन में,
जिसका भारी योग रहा।
जीव श्रेष्ठ वहीं व्याकुल है,
दर-दर में दु:ख भोग रहा।।
यक्ष प्रश्न है कोरोना को,
मात कैसे दी जानी है?
सामाजिक प्राणी सजग बनो,
तब बात समझ में आनी है।।
प्रकृति ने परीक्षा रची है,
बेखबर रहे पछताओगे।
अरस्तू की बात तभी बचेगी,
जब आज सजग हो पाओगे।।
लॉकडाउन से खाद्य श्रृंखला,
जब कोरोना की टुट जाएगी।
सामाजिक प्राणी, वसुधैव कुटुंब की,
कहानी तब बच पाएगी।।
Comments
Post a Comment