ये नसीहत है

गुलशन में गुल सारे परेशान हैं।
सोच रही हूँ मैं ये कैसा इम्तिहान है।
अपना ही अपनों से बन रहा अंजान है
जीने की कीमत चुका रहा इन्सान है।
         भीड़ में भी लगता थम गया ये जहान है।
         लौट आये खुशी ये दिल का अरमान है।
         तड़प रहा अपनों से मिलने को ये दिल।
         ये कैसी खामोशी चहुँओर सुनसान है ।
छाया घना अंधेरा पर रोशनी की आस है
होगा नया सवेरा ये आशा है विश्वास है।
फिर से महकेगा गुलिस्तान ये हकीकत है।
रहोगे घर में तो फिर मिलेंगे ये नसीहत है।
           
रचयिता
सीमा कुमारी,
प्रभारी प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कादरीबाग,
विकास खण्ड-डिबाई,
जनपद-बुलन्दशहर।

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