मानवता सिखलाएँ हम

ऐसे शब्द कहा से लाएँ हम ,
जो कोरॉना को समझाएँ हम।
लाचार है इंसान उसके आगे,
कैसे मानवता सिखलाएँ हम।।

जो निकल रहे हैं घरों से आज,
कल यही पछताएँगे।
अपनी करनी पर रोएँगे,
पर अपनों को न पाएँगे।

कुदरत को रुष्ट हमने किया,
न गलती पर पछताते हैं।
करते हैं प्रकृति का दोहन
और ईश्वर को दीप दिखाते हैं।

हम सबको अब समझना होगा
कॉरोना से मिलकर लड़ना होगा
कदम ना जाए घर के बाहर
कदम को अंदर खींचना होगा
अपने लिए ना सही, अपने
'अनुज' के लिए लड़ना होगा।

रचयिता
अनुज पटैरया,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय टिकरिया,
विकास क्षेत्र-मानिकपुर,
जनपद-चित्रकूट।

Comments

  1. बहुत सुन्दर , श्रीप्रकाश पटेरिया जी को यूट्यूब पर सुनिए और अच्छा लिखेंगे।शुभकामनाएं।।

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