आर्य समाज दिवस

       भारतीय संस्कृति वैदिक काल से ही सर्वश्रेष्ठ रही, समाज कर्म के आधार पर विभाजित था, समाज में महिलाओं को भी पुरुषों के समान के समान ही शिक्षा का अधिकार प्राप्त था, विदुषी महिलाएँ, गार्गी, अनुसुइया आदि इसका प्रमाण हैं। परन्तु समय के साथ, समाज का कर्म के आधार पर हुआ विभाजन अब तक जाति व्यवस्था में जकड़ चुका था। महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी थी। लोग हिन्दू धर्म को छोड़कर, ईसाई धर्म अपना रहे थे।
        इन्हीं बुराइयों को दूर करने के लिए हिन्दू धर्म सुधार हेतु आर्य समाज की स्थापना 1875 ई0  में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा की गई। 
        आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते किया व धर्मिक कर्मकांड, मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलिपूजा व अंधविश्वास को अस्वीकार किया गया।

        आर्य समाज की स्थापना से ही सामाजिक कुरीतियों व बुराइयों के विरुद्ध आंदोलन किया; जैसे-जातिवाद जड़मूलक समाज को तोड़ना, छुआछूत का विरोध, महिलाओं के लिए समान अधिकार, बालविवाह का उन्मूलन, विधवा विवाह का समर्थन। समाज के सभी वर्गों को एक समान यज्ञोपवीत धारण करना व वेद पढ़ने का अधिकार का समर्थन किया।

        इसके अतिरिक्त धर्मान्तरित हिंदुओं को हिन्दू धर्म में लाने का आंदोलन विशेष रूप से ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध चलाया गया।
     आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी द्वारा रचित ‘सत्यार्थ प्रकाश' नामक ग्रन्थ, आर्य समाज का  मूल ग्रन्थ है।
     आर्य समाज द्वारा भारतीयों को प्राचीन संस्कृति को मौलिक रूप से स्वीकार करने के लिए “वेदों की ओर लौटो" नारा दिया।
    आर्य समाज का सबसे अधिक प्रभाव विद्या तथा सामाजिक सुधार के क्षेत्र में ही देखने को मिलता है।
     19वीं शताब्दी में भारत मे समाज सुधारक आन्दोलनों में ‘आर्य समाज' सबसे अग्रणी था।

संकलनकर्ता
दीपा आर्य,
प्रधानाध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय लमगड़ा,
विकास खण्ड-लमगड़ा,
जनपद-अल्मोड़ा,
उत्तराखण्ड।


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