क्या लिखूँ
मिशन शिक्षण सम्वाद की पत्रिका छप रही है,
मिला मुझे समाचार,
सोच मैं भी लिख डालूँ,
आर्टिकल दो चार।
क्या लिखूँ ? , कैसे लिखूँ?
कुछ समझ मे नही आता,
यूं ही बैठे - बैठे मेरा ,
सारा समय गुजर जाता।
कविता लिखूँ ?, कहानी लिखूँ ?
या लिखूँ कोई लेख?
इसी सोच में बैठी हूँ,
सिर घुटनों पर टेक।
सोचा बहुत , परन्तु न मिला,
कथावस्तु का रूप,
चिंतन में ही बीती रात्रि
लगी चमकने धूप।
कोई अनुभव ही लिख डालूँ,
सरस या कि गमगीन।
हाय! लिखूँ कैसे मैं उसको?
ठहरी अनुभवहीन।
इन्हीं विचारों में खोकर
तुकबन्दी कैसे कर डाली,
टूटे- फूटे शब्दों में ही,
सम्पूर्ण व्यथाएँ भर डाली।
आशा है सब इसको पढ़कर,
मुझे सुकवयित्री मानेंगे,
ये मेरी मौलिक रचना है,
इसे सभी जानेंगे।
रचयिता
विदिशा मन्द्रेश पंवार,
सहायक शिक्षिका,
उच्च प्राथमिक विद्यालय जतुली,
विकास खंड-हरियावां,
जनपद-हरदोई।
मिला मुझे समाचार,
सोच मैं भी लिख डालूँ,
आर्टिकल दो चार।
क्या लिखूँ ? , कैसे लिखूँ?
कुछ समझ मे नही आता,
यूं ही बैठे - बैठे मेरा ,
सारा समय गुजर जाता।
कविता लिखूँ ?, कहानी लिखूँ ?
या लिखूँ कोई लेख?
इसी सोच में बैठी हूँ,
सिर घुटनों पर टेक।
सोचा बहुत , परन्तु न मिला,
कथावस्तु का रूप,
चिंतन में ही बीती रात्रि
लगी चमकने धूप।
कोई अनुभव ही लिख डालूँ,
सरस या कि गमगीन।
हाय! लिखूँ कैसे मैं उसको?
ठहरी अनुभवहीन।
इन्हीं विचारों में खोकर
तुकबन्दी कैसे कर डाली,
टूटे- फूटे शब्दों में ही,
सम्पूर्ण व्यथाएँ भर डाली।
आशा है सब इसको पढ़कर,
मुझे सुकवयित्री मानेंगे,
ये मेरी मौलिक रचना है,
इसे सभी जानेंगे।
रचयिता
विदिशा मन्द्रेश पंवार,
सहायक शिक्षिका,
उच्च प्राथमिक विद्यालय जतुली,
विकास खंड-हरियावां,
जनपद-हरदोई।
पदुमलाल लाल पुन्नालाल बक्सी जी का निबंध "क्या लिखूं" याद आ गया।
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