बच्चा बन जाना पड़ता है
बच्चों को समझाने के लिए
क्या क्या बनना पड़ता है।
कभी कभी तो खुद भी
बच्चा बन जाना पड़ता है।
कभी एक अभिनेता जैसे
अभिनय करके दिखलाना पड़ता है
तो कभी कविता समझाने को,
कवि भी बन जाना पड़ता है।।
कभी कहानी समझाने को
खुद कहानी में ढल जाना पड़ता है
तो कभी चित्रों को गढ़ने को
चित्रकार भी बन जाना पड़ता है।
कभी नाप तौल सिखलाने को,
व्यापारी भी बनना पड़ता है।
तो कभी विज्ञान समझाने को,
कलाम भी बन जाना पड़ता है।
कभी योग सिखलाने को,
हम योगी भी बन जाते है।
लगन लगे जब ऐसी तो
हमें जोगी भी बनना पड़ता है।
बच्चों के भविष्य को तराशने में,
हमें कितने किरदारों से गुज़र जाना पड़ता है।
कभी कभी तो खुद भी बच्चा बन जाना पड़ता है।
रचयिता
नरेंद्र प्रताप सिंह,
प्राथमिक विद्यालय खजुहा,
विकास खण्ड-गुगरापुर,
जनपद-कन्नौज।
क्या क्या बनना पड़ता है।
कभी कभी तो खुद भी
बच्चा बन जाना पड़ता है।
कभी एक अभिनेता जैसे
अभिनय करके दिखलाना पड़ता है
तो कभी कविता समझाने को,
कवि भी बन जाना पड़ता है।।
कभी कहानी समझाने को
खुद कहानी में ढल जाना पड़ता है
तो कभी चित्रों को गढ़ने को
चित्रकार भी बन जाना पड़ता है।
कभी नाप तौल सिखलाने को,
व्यापारी भी बनना पड़ता है।
तो कभी विज्ञान समझाने को,
कलाम भी बन जाना पड़ता है।
कभी योग सिखलाने को,
हम योगी भी बन जाते है।
लगन लगे जब ऐसी तो
हमें जोगी भी बनना पड़ता है।
बच्चों के भविष्य को तराशने में,
हमें कितने किरदारों से गुज़र जाना पड़ता है।
कभी कभी तो खुद भी बच्चा बन जाना पड़ता है।
रचयिता
नरेंद्र प्रताप सिंह,
प्राथमिक विद्यालय खजुहा,
विकास खण्ड-गुगरापुर,
जनपद-कन्नौज।
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