अन्तर्मन गूँज

गुन-गुन  ,कल-कल,छल-छल मह  मह ,
पल-पल,चंचल,अविरल,गुंजन
सरपट,सर-सर,फर-फर,फुदकत
फैला फन को फनकार की तरह
चंचल चितवन मन डोल रहा।

अब व्यर्थ की उलझन ना पालो,
अन्तर्मन फिर से बोल रहा।
चहुँ ओर मिलेगा कड़वापन,
खुद से मिश्री रस घोल रहा।

ना पाल किसी से बैर मनुज,
ना दोस्ती की दरकार करो।
माना कि प्रेम है लोगो से ,
ज्यादा तुम खुद से प्यार करो।।

ठोकर तो जीवन देता है,
ठोकरों पर फिर से वार करो।
गिरना उठना लगता रहता,
अब उठकर तुम संहार करो।।

उम्मीदें हो तो खुद से हो,
स्पर्धा हो तो खुद से हो।
उनकी जिन्दगी,उनका अंदाज,
तुम उसको नजरन्दाज करो।।

बलवान नही कोई जग में,
हर मनुज भीरू और कायर है।
पर उत्साह,पर खुशी से,
डाह जिस नर मे जाग रहा,
समझो वह नर डरपोक बड़ा
मेहनत से पीछे भाग रहा!!

खुशियाँ ऊशिया कोई चीज नही,
अहसासों की यह खेती है।
दुखी हो तो कारण तुम ही हो,
तुमसे ही जीवन ज्योति है।।

लड़ना-भिडना सबको पड़ता,
संघर्ष बिना जीवन ही  नहीं।
यह सोच के विचलित ना होवो,
पराजय बिन जय में वजन ही नहीं ।।

यह जीवन है अमृत रसधार,
झर-झर झरना सा झरने दो।
तुम भी इसमे गोते मारो,
और लोगों को भी अंजलि भरने दो।।
       
रचनाकार:-
बिंदू राय,
प्राथमिक विद्यालय सुरतापुर,
मोहम्मदाबाद  गाजीपुर।


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