मत छीनो मेरा बचपन

अभी तो था काँधो  पे बस्ते को टंगना
अभी तो बहुत सी किताबें थीं पढ़नी
अभी था भविष्य का आधार रखना
अभी तो थी स्वप्नों की  ताबीर गढ़नी

मगर भूख शातिर, नटी बन  नचाई
हमें खींच कक्षा से सड़कों पे लाई
कही खेत, ईंटें ,कहीं झाड़ू, बरतन
 कहीं चूड़ियों संग ढला नर्म तन- मन

बहुत से फसाने सुने  अनसुने से
लिखे खून से आंसुओं में बुने से ,
कहे चीख कर हाथ फैला के हर क्षण
ना छीनो खिलौने, हँसी, मेरा बचपन !

रचयिता
कुहू बनर्जी,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अटकोहना,
विकास खण्ड-नकहा,
जनपद-लखीमपुर खीरी।

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