साक्षी हूँ मैं
साक्षी हूँ मैं .....
स्वच्छन्द उड़ते उन पक्षियों की ....
जो अथाह उत्साह समेटे ,
अपने पंखों में और हृदय में ,
उड़ते जाते ना जाने किस दिशा में,
शायद ढूंढने अपना नया ठिकाना,
बढे जाते उस ओर,
जहाँ है उनका नव्य घरौंदा,
जिसे है उन्हें अपनाना ।।
कृतज्ञ हूँ मैं ....
शीतल निर्मल विह्वल सी,
कल कल बहती सरिता की ,
प्रवाहित रहती निरंतर उन्मुक्त सी ,
असंख्य दावानालों से भरी,
प्यास बुझाती सदा पथिक की ।।
सीखती सदैव समर्पण मैं .....
बारिश की उन बूँदों से,
जो बरसती हैं निःस्वार्थ,
नष्ट करने धरा की तपिश,
देने नवजीवन मुरझाई कोपलों को ,
और प्राणियों को देने आशीष,
समाकर स्वयं को वसुधा में ,
करके प्राणियों को शाश्वत,
बन जाती प्राणदा,
खत्म करके अपना अस्तित्व ।।
प्रकृतिकृत ये कार्य पूज्यनीय,
सदियों से रहा अतुलनीय,
मत छेड़ इसे नादान मनुष्य,
रह जाएगी बंद मुठ्ठी,
जब गुज़र जाएगा समय अमूल्य ।
रचयिता
पूजा सचान,
(सहायक अध्यापक),
English Medium
Primary School Maseni,
Block-Barhpur,
District-FARRUKHABAD.
स्वच्छन्द उड़ते उन पक्षियों की ....
जो अथाह उत्साह समेटे ,
अपने पंखों में और हृदय में ,
उड़ते जाते ना जाने किस दिशा में,
शायद ढूंढने अपना नया ठिकाना,
बढे जाते उस ओर,
जहाँ है उनका नव्य घरौंदा,
जिसे है उन्हें अपनाना ।।
कृतज्ञ हूँ मैं ....
शीतल निर्मल विह्वल सी,
कल कल बहती सरिता की ,
प्रवाहित रहती निरंतर उन्मुक्त सी ,
असंख्य दावानालों से भरी,
प्यास बुझाती सदा पथिक की ।।
सीखती सदैव समर्पण मैं .....
बारिश की उन बूँदों से,
जो बरसती हैं निःस्वार्थ,
नष्ट करने धरा की तपिश,
देने नवजीवन मुरझाई कोपलों को ,
और प्राणियों को देने आशीष,
समाकर स्वयं को वसुधा में ,
करके प्राणियों को शाश्वत,
बन जाती प्राणदा,
खत्म करके अपना अस्तित्व ।।
प्रकृतिकृत ये कार्य पूज्यनीय,
सदियों से रहा अतुलनीय,
मत छेड़ इसे नादान मनुष्य,
रह जाएगी बंद मुठ्ठी,
जब गुज़र जाएगा समय अमूल्य ।
रचयिता
पूजा सचान,
(सहायक अध्यापक),
English Medium
Primary School Maseni,
Block-Barhpur,
District-FARRUKHABAD.
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteप्रकृति पूर्ण
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