सावन और शरद

शरद ने किया निमंत्रित,

सावन आया झूम के।

रिमझिम-रमझिम वर्षा गीत,

सभी गाओ घूम के।।


शरद पूर्णिमा की खीर,

 हमें तो चखनी है।

शरद लाया सावन को,

 रोशनी चाँद न दिखनी है।।


एक के सात एक फ्री,

ये बात मौसम को भी भाई।

तभी शरद के साथ कैसी,

 रिमझिम बरसात आई।।


एक से बढ़कर एक बली,

 क्या मौसम पर ताकत चली।

हवा का रुख न मोड़ पाए,

मौसम पर किसी की न चली।।


गरमी की हुई विदाई,

आगे हेमंत खड़ा।

मौसमों के नज़ारे सुंदर,

कोई न किसी से लड़ा।।


एक के बाद एक आते हैं,

अपनी मिठास करवाते हैं।

पर इस शरद की बात निराली,

लाया साथ वर्षा मतवाली।।


रचयिता 
प्रतिभा भारद्वाज,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यामिक विद्यालय वीरपुर छबीलगढ़ी,
विकास खण्ड-जवां,
जनपद-अलीगढ़।

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