निपुण बनो
पढ़- पढ़ के बनो निपुण,
सीख- सीख बनो निपुण।
करो योग रहो निरोग,
योग कर- कर बनो निपुण।।
निपुण होएँ सब बेटी-बेटा,
दूर होएँ छाप अँगूठा।
अँधेरा जब छट जाए,
तब क्यों न निपुणता आए।।
निपुण बनो निपुण करो,
अँधेरे से अब न डरो।
नित नए आयाम गढ़ो,
निपुणता से आगे बढ़ो।।
निपुण कार्यक्रम आया है,
बचपन इसने महकाया है।
साक्षरता और गणित से,
संसार देखना सिखाया है।।
रचयिता
प्रतिभा भारद्वाज,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यामिक विद्यालय वीरपुर छबीलगढ़ी,
विकास खण्ड-जवां,
जनपद-अलीगढ़।
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