दीप जलाना है
हर हृदय में दीप जलाना है,
बसा है जो मन में अन्धकार।
उसको दूर भगाना है,
आशा और विश्वास लेकर,
करनी है सार्थक पहल,
सजाना है अपने सपनों का,
एक सुन्दर सा महल।
कोई भूखा न रहे जग में,
इस बार मनायें ऐसी दीवाली,
हर चेहरे पर मुस्कान खिली हो,
ना हो छायी बेबसी की छाया काली।
अलख एक ऐसी जगानी है,
हर घर खुशी हर दिन छाए।
हों पटाखे हर नन्हें हाथों में,
एक भी हाथ न खाली रह जाए।
मिठाइयों की घुले एक ऐसी मिठास,
निर्जीव में भी खिल उठे जीवन की आस।
द्वेष, दुख, तमस ना रहे कहीं जग में
चलो मिलकर आज एक ऐसा भारत देश सजाएँ।
रचयिता
ब्रजेश सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बीठना,
विकास खण्ड-लोधा,
जनपद-अलीगढ़।
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