राम नहीं कोई इंसान
फिर जला रावण विद्वान,
बाकी रह गए चंद निशान।
प्रकांड पंडित, था एक ज्ञानी,
कूट-कूट कर भरा था ज्ञान।।
असुरों का अविजीत राजा,
जन्मा फिर उसमें अभिमान।
त्रस्त था अत्याचारों से जग,
भू पर जन्मे फिर भगवान।।
चुरा के सीता को ले आया,
देवी को ना सका वो जान।
अपहरण का किया है पाप,
नहीं हुआ उसको यह भान।।
लड़ने को तैयार राम से,
दिया युद्ध का फिर आवाह्न।।
देख सामने मृत्यु को फिर,
रावण भी यह गया था जान।
राम नहीं कोई इंसान।
राम नहीं कोई इंसान।
प्रगटे हैं भू पर भगवान।।
राम नहीं कोई इंसान।
रचयिता
पूनम गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनीपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।
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