तभी हो दीवाली
मिटाकर बुराई, उदित लौ निराली,
जले कर्म दीपक तभी हो दीवाली।
तुम्हें इस जहां को हैै उपवन बनाना,
हटा कंटकों को, सुमन है खिलाना।
लगे फिर शिशिर में भी मौसम सुहाना,
बनी पर्ण प्रीति, मुदित वृक्ष डाली।
जले प्रेम दीपक तभी हो दीवाली।।
न शिक्षा से कोई भी वंचित हो जग में,
कि बन प्राण यह ज्ञान संचित हो जग में।
हटा तम को प्रकाश अंचित हो जग में,
हो विद्या से जगमग हर इक रात काली।
जले ज्ञान दीपक तभी हो दीवाली।।
उठे सच कनक बन तभी हों उजारे,
यूँ षड्यंत्र, छ्ल, झूठ सब इससे हारे।
जिधर कर दृष्टि विजय के नज़ारे,
दिखे भाल पर बस सदा सच की लाली।
जले सत्य दीपक तभी हो दीवाली।।
न दुनिया में बाक़ी रहे अब निराशा,
हर इक हाथ थामे चले साथ आशा।
गई यामिनी प्रातः ने युग तराशा,
यूँ उम्मीद ने जान तिनके में डाली।
जले आस दीपक तभी हो दीवाली।।
मिटाकर बुराई, उदित लौ निराली,
जले कर्म दीपक तभी हो दीवाली।।
रचयिता
फ़राह हारून वफ़ा,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया भांसी,
विकास खण्ड-सालारपुर,
जनपद-बदायूँ।
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