दशहरा

 दशहरा वो पर्व है 

जो प्रतीक है 

बुराई पर अच्छाई का 

झूठ पर सच्चाई का 

भीतरी व्याधि, क्रोध

और भय की विदाई का 

परन्तु करते क्या हैं हम 

सिर्फ़ एक पुतला दहन

भीड़ के साथ मिलकर 

सिर्फ़ परंपरा निर्वहन 

पर क्या होगा इससे 

क्या सच में भीतर का 

रावण मर जाएगा 

सोच बदलनी है मन की 

तभी तो सब सँवर पाएगा 

तो क्यूँ न भीतरी रावण को

मिटाकर करें स्वाह 

तभी विजय-दशमी पर्व का 

होगा अर्थपूर्ण निर्वाह 

तो लेकर संकल्प आज 

खुद की बुराइयों को मिटाएँ

इन्हीं शब्दों के साथ 

दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ


रचयिता
पारुल चौधरी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हरचंदपुर,
विकास क्षेत्र-खेकड़ा,
जनपद-बागपत।

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