दीपक और दीवाली
मिट्टी के दीपक फूलों की रंगोली,
सखियों ने की खूब हँसी-ठिठोली।
प्यारी सी लड़ियाँ और रोशन फिजाएँ,
ये मासूमियत से भरी रोशन निगाहें।
कुछ भी नहीं है फिर भी रोशन दीवाली,
खूबसूरत रातें जुगनुओं वाली।
नन्हें-नन्हें हाथों से बनाई हैं रंगोली,
सजाई है चौखट, देहरी और दीवारें।
बेशक हैं वंचित, मगर हैं होनहार,
ये हैं हमारे ग्रामीण नौनिहाल।
हुनर भी है, चाहत लगन भी है इनमें,
बस नहीं है तो संसाधन जो हैं जरुरी।
चलो आज मिलकर ये अंधेरा मिटाएँ,
इन्हें भी हम सारे संसाधन जुटाएँ।
तब जो खुशियों से रोशन होंगी फिजाएँ,
सही मायनों में हम तब ही दिवाली मनाएँ।
अमावस की काली रात्रि में रोशन दीवाली,
खूबसूरत सी होगी तब रात्रि अमावस वाली।
रचयिता
पूनम सारस्वत,
सहायक अध्यापक,
एकीकृत विद्यालय रुपानगला,
विकास खण्ड-खैर,
जनपद-अलीगढ़।
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