करवाचौथ सखी है आया
करवाचौथ सखी है आया।
सदा सुहागन का वर पाया।।
देख गगन का चाँद निराला।
पूर्ण आस सब करने वाला।।
रात सुहागों वाली आई,
गोरी मन में अति हर्षाई।
आज स्वयं का रूप सँवारूँ,
कैसे खुद की नजर उतारूँ।।
सिंदूर मैंने माथ लगाया,
और गले में हार सजाया।
डाल शीश पर लाली चुनर।
पहने हाथों में अब झूमर।
एक चाँद अंबर में छाया,
दूजा धरती पर है आया।
छिपा मेघ के भीतर जाकर,
रूप सुहाना मेरा पाकर।।
लिए हाथ में पूजन थाली,
आज लगूँ मैं तो मतवाली।
आज स्वयं का रूप सवारूँ,
कैसे खुद की नजर उतारूँ।।
रचयिता
गीता देवी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,
विकास खण्ड- बिधूना,
जनपद- औरैया।
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