गोवर्धन

कान्हा मुरली मधुर बजाय जइयो,

बुलाय रहे बृज के वासी।

संकट से हमें बचाय जइयो,

बुलाय रहे ब्रज के वासी।


देवराज इन्द्र बड़े अभिमानी,

करते थे अपनी मनमानी।

कभी हमें पानी को तरसाएँ,

कभी बरसाएँ भर-भर पानी।

जरा उनको सबक सिखाय जइयो,

बुलाय रहे ब्रज के वासी।


इंद्रदेव को क्रोध जो आए,

खूब झमाझम जल बरसाए।

जलमग्न हुए घर और आँगन,

जन-जन त्राहि-त्राहि मचाए।

जल से भर गए गली चौराहे।

जरा गोवर्धन फिर उठाय जइयो,

बुलाय रहे ब्रज के वासी।


खाली हो गए काले बादल,

मेघों से भी बरसा ना जाए।

इंद्रदेव फिर बड़े घबराए,

मन ही मन में बड़ा लजाए।

जरा वंशी मधुर बजाय जइयो,

बुलाय रहे ब्रज के वासी।


कान्हा मेरे लीला दिखाओ,

गोवर्धन पर रास रचाओ।

भक्तों को दर्शन फिर दे जाओ,

जीवन सबका खुशहाल बनाओ।

जरा राधे संग में आय जइयो,

बुलाय रहे ब्रज के वासी।


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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