दीपावली

आओ मित्रो नवाचार कर,

                 गीत लिखें दीवाली में।

दुश्मन के दिल प्रीत जगाकर,

                 जीत लिखें दीवाली में।।


अच्छा, बुरा, बड़ा या छोटा,

                कोई भी नर - नारी हों।

राम, बुद्ध, अल्लाह, मोहम्मद,

                 ईसा  या गिरिधारी हों।।

जाति-  धर्म में भेद न माना,

                सबको  गले  लगाया है।

परहित में जो दिया जरा भी,

                वह  दीया बन पाया है।।


टिमटिम जल जग रोशन कर नव,

                 गीत  लिखें  दीवाली में।

दुश्मन के दिल ......     ......


जो भी  द्वेष, ईर्ष्या  अन्तस,

             कपट, दम्भ का बीज कहीं।

ये  दुर्गुण  मन  मैला  करते,

                संग्रह वाली  चीज  नहीं।।

है प्रकाश का उत्सव देखो,

                साफ- सफाई कर डालो।

ममता, दया, ज्ञान, समता का,

               पुञ्ज हृदय में भर डालो।।


सुधा समान साज निज स्वर को,

                मीत  लिखें  दीवाली में।।

दुुश्मन के दिल .....     ......


धरा, भानु, शशि कर्म न भूलें,

               दिया - रैन मौसम कोई।

अनिल, अम्बु औ अनल कभी भी,

               छोड़ें  नहीं  धरम कोई।।

मानव होकर हम क्यों भूले,

               मानवता का ध्यान नहीं।

वतन, रतन तन याद करो सब,

               इनकी  कोई  शान नहीं।।


एक चमन के सुमन सभी क्यों,

                भीत लिखें दीवाली में।

दुश्मन के दिल प्रीत जगाकर,

                जीत लिखें दीवाली में।।


रचयिता

कवि सन्तोष कुमार 'माधव',

सहायक अध्यापक,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय सुरहा,

विकास खण्ड-कबरई,

जनपद-महोबा।



Comments

Total Pageviews