इक दिया जलाएँ
रौशनी की राह में उठे हर क़दम
इक दिया जलाओ तुम इक जलाएँ हम।
ज़र्रा-ज़र्रा चमके बन के सितारा
ज़मीं पे उसने अम्बर आज है उतारा।।
सूखे लबों को दें हम मुस्कान की शबनम
इक दिया जलाओ तुम इक जलाएँ हम।
हो रहीं हवाएँ तेज़ बन रही आंधियाँ
सख़्त धूप की तपिश से जल रही वादियाँ।
आओ लगायें हम शजर, छाँव दें नरम
इक दिया जलाओ तुम इक जलाएँ हम।।
आसमान हो खुला, पंख सब पसारें
बंदिशें कोई न हो बचपन को सँवारें।
हर तरफ हँसी-ख़ुशी का करें जतन
इक दिया जलाओ तुम इक जलाएँ हम।।
रचयिता
कौसर जहाँ,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बड़गहन,
विकास क्षेत्र-पिपरौली,
जनपद-गोरखपुर।
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