पर्यावरण और पेड़

कितनी सुंदर थी धरती ये, बड़ा मनोरम पर्यावरण,

सूरज और चाँद सितारों का, था कितना सुंदर आवरण। 

फिर  तहस-नहस क्यों कर डाला, तूने अनुपम उपहार को, 

हुआ जरूरी क्यों है, लोगो, आज प्रकृति का रक्षण।। 


पर्यावरण का एक जरूरी, अंग पेड़ और पौधे हैं, 

फिर भी उनकी  कटाई को, हम आमादा हो गए हैं। 

मानो, जैसे इस भूतल पर, मनुष्य ही नहीं गिनती में,

पेड़ बिचारे संख्या में कुछ ज्यादा ही हो गए हैं।।

 

भौतिक जीवन के आलम में, यह बात गए हैं हम सब भूल, 

कि पर्यावरण सुरक्षा की, खातिर आवश्यक हैं ये फूल।। 


आज हवा का बुनियादी संतुलन ही बिगड़ गया। 

ऑक्सीजन की जगह कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ गया।। 

क्यों बोलो आज सुमन का वह सुरभित पराग भी झड़ गया,   

करके उर्वरकों का प्रयोग, पृथ्वी का अंतर सड़ गया।। 


इस आसमान का नीला रंग, क्यों स्याह होता जा रहा। 

सागर-लहरों में  सुनामी का, खौफ भरता  जा रहा। 

कितने ही जैविक आक्रमण हो रहे आज इंसानों पर, 

जानलेवा वायरस से देखो यूँ टेंशन बढ़ता जा रहा,  

घुटने टेके इंसानों ने, बिन मौत के मरता जा रहा।

फिर भी प्रयोगों पर प्रयोग, लैबों में करता जा रहा।। 


माना कि पेड़ों का स्वरूप, कुछ ज्यादा ही है निखर गया, 

पर, उनका चोयल हरा रंग, हाय अंदर ही मर गया। 

वैदिक कालीन हवाओं में धुएँ का जहर भी भर गया, 

सच कहते हैं दुनिया वाले, अब वो जमाना गुजर गया।। 


जो अब भी इंसां न चेता, 

तो वनों की लाश निश्चित है,,, 

इंसानियत के खून से सींचा 

पलाश भी निश्चित है,,, 

श्मशान में ही जिंदगी की, 

तलाश भी निश्चित है,,, 

धरती विनाश निश्चित है।

और काल पाश निश्चित है।।


रचयिता

पूनम गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनीपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।



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