नेत्रदान एक महादान
नेत्रदान है महादान सम, इसकी महिमा है न्यारी।
नेत्रहीन को नेत्र मिले तो, हो दुनिया उजियारी।
कर दो तुम उपकार किसी पर, गीत तुम्हारे गाएगा,
उन उजली आँखों से वो भी, सुंदर सपन सजाएगा।
क्या लेकर आए थे जग में, क्या लेकर तुम जाओगे,
माटी के पुतले हो तुम तो, माटी में मिल जाओगे।
है महान पावन यह धरती, त्याग हमें सिखलाती है,
सदा करेंगे नेकी सबकी, सही मार्ग दिखलाती है।
राष्ट्र हमें श्रीलंका जैसा, इन आँखों को देता है।
है अपार जनमानस फिर क्यों, भारत उनसे लेता है।
जो दधीच की भाँति विश्व हित अंगदान कर जाते हैं,
करती याद पीढ़ियाँ उनको नत हो, शीश झुकाते हैं।
स्वर्ग यही है, नर्क यही है, क्या तुम इसको माने हो,
सुख, दुःख का ये ताना-बाना, इतने तो पहचाने हो।
आओ कर लें पुण्य दान ये, इतने तो उपकारी हो,
नयनों को फिर रोशन करके, सबके हम हितकारी हो।
रचयिता
चारु मित्रा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय गदपुरा,
विकास खण्ड-खंदौली,
जनपद-आगरा।
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